चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पर जावें वीर अनेक ।। पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी
-मोलन-
"ज़िन्दगी" बदलने के लिए
ReplyDeleteलड़ना पड़ता है..!_
और आसान करने के लिए
समझना पड़ता है..!
वक़्त आपका है,चाहो तो
सोना बना लो और चाहो तो.
सोने में गुज़ार दो..!
अगर कुछ अलग करना है तो
भीड़ से हटकर चलो..!
भीड़ साहस तो देती है पर
पहचान छीन लेती है...!
मंज़िल ना मिले तब तक हिम्मत
मत हारो और ना ही ठहरो....
क्योंकि
पहाड़ से निकलने वाली नदियों ने
आज तक रास्ते में किसी से नहीं पूछा कि... _
"समन्दर कितना दूर है.
उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम् ।
ReplyDeleteतडागोदरसंस्थानां परीवाह इवाम्भसाम् ।।
भावार्थ-- जिस प्रकार नदियों और तालाबों का पानी निरन्तर बहते रहने से ही स्वच्छ रहता है, उसी प्रकार कमाया हुआ धन भी निरन्तर त्याग एवं सदुपयोग करते रहने से ही शुद्ध रहता है।।
🌹आप सब को धनतेरस की हार्दिक शुभेच्छा, जीवन का हर पल मंगलमय हो🌹
🌹हरे कृष्ण🌹